क्या वाकई ईवीएम बदली जा सकती है, आपको जरूर जाननी चाहिए ईवीएम से जुड़ी ये महत्वपूर्ण बातें - WE ARE ONE

Breaking

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Wednesday, May 22, 2019

क्या वाकई ईवीएम बदली जा सकती है, आपको जरूर जाननी चाहिए ईवीएम से जुड़ी ये महत्वपूर्ण बातें

लोकसभा चुनाव नतीजों से पहले विपक्ष के नेता ईवीएम को लेकर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन चुनाव आयोग विपक्ष के आरोपों को खारिज कर रहा है। क्या वाकई ईवीएम मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम तक सुरक्षित है। एक होता है स्ट्रांग रूम जहां कड़ी सुरक्षा में ईवीएम मशीन रखी जाती है और ऑफिसर्स के अलावा वहां कोई नहीं जा सकता है। यहां सुरक्षा तीन स्तर पर होती है। सीआरपीएफ स्ट्रांग रूम में ईवीएम की सुरक्षा के लिए तैनात होती है और बाहर राज्य की पुलिस सुरक्षा कर रही होती है। स्ट्रांग रूम की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिले के डीएम और एसपी की होती है। स्ट्रांग रूम में ईवीएम रखकर सील कर दिया जाता है और उस वक्त सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि मौजूद होते हैं। यह प्रतिनिधि खुद भी सील लगा सकते हैं। स्ट्रांग रूम में सिर्फ एक तरफ से एंट्री होती है। अगर कोई खिड़की भी हो तो वह भी सील करनी होती है साथ ही कमरे के लिए डबल लॉक सिस्टम होता है। एक चाबी चुनाव आयोग के रिटर्निंग ऑफिसर के पास होती है और दूसरी चाबी उस लोकसभा क्षेत्र के असिस्टेंट रिटर्निंग ऑफिसर के पास होती है।
स्ट्रांग रूम की एंट्री पर कैमरा भी होता है। सुरक्षाबलों के पास एक लॉग बुक भी होती है जिसमें हर इंट्री की तारीख, वक्त, अवधि और नाम दर्ज करना जरूरी होता है चाहे वह चुनाव आयोग का अधिकारी हो या एसपी या डीएम ही क्यों न हो। जहां वोट गिने जाते हैं अगर वह कमरा स्ट्रांग रूम के पास है तो दोनों कमरों के बीच एक मजबूत पहरा होता है ताकि स्ट्रांग रूम तक कोई पहुंच न सके। अगर दोनों रूम थोड़ी सी दूरी पर हैं तो रास्ते के दोनों तरफ बैरिकेडिंग जरूरी है और उसके बीच से ही ईवीएम काउंटिंग हॉल तक पहुंचाए जाते हैं। स्ट्रांग रूम से काउंटिंग हॉल तक ईवीएम ले जाने का रिकॉर्ड दिया जाता है ताकि कोई फेरबदल न हो। चुनाव से पहले एक जिले में उपलब्ध सभी ईवीएम डिस्ट्रिक्ट इलेक्टोरल ऑफिसर यानी डीईओ की निगरानी में गोदाम में रखी होती है। गोदाम में भी डबल लॉक सिस्टम होता है और उसकी सुरक्षा में पुलिस बल हमेशा तैनात रहते हैं। इसके साथ ही सीसीटीवी सर्विलांस ही रहता है।
चुनाव से पहले गोदाम से एक भी ईवीएम चुनाव आयोग के आदेश के बिना बाहर नहीं जा सकती है। चुनाव के वक्त ईवीएम की जांच पहले इंजीनियर करते हैं और यह जांच राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होती है। चुनाव की तारीख करीब आने के बाद ईवीएम बिना किसी क्रम के अलग-अलग बूथ के लिए आवंटित की जाती है। इस वक्त अगर राजनीतिक पार्टी के प्रतिनिधि मौजूद नहीं होते हैं तो ईवीएम की लिस्ट राजनीतिक पार्टियों के कार्यालयों को सौंप दी जाती है। सभी ईवीएम मशीनों के सीरियल नंबर को पार्टियों से साझा किया जाता है।
जब ईवीएम मतदान केंद्र के लिए रवाना होती है तो सभी राजनीतिक पार्टियों को सूचित किया जाता है। उनके साथ समय और तारीख को भी साझा किया जाता है। कुछ अतिरिक्त ईवीएम भी रखी जाती है ताकि तकनीकी खराबी होने की सूरत में मशीन को बदला जा सके। वोटिंग शुरू होने से पहले ईवीएम के नंबर का मिलान राजनीतिक पार्टियों के एजेंटों की मौजूदगी में किया जाता है। वोटिंग खत्म होते ही बूथ से ईवीएम एकदम स्ट्रांग रूम नहीं भेजी जाती है। अधिकारी पहले ईवीएम में रिकॉर्ड वोटों का परीक्षण करता है उसके बाद सभी प्रत्याशियों के पोलिंग एजेंटों को एक अटेस्टेड कॉपी भेजी जाती है और उसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है।
प्रत्याशी या उनके पोलिंग एजेंट सील होने के बाद अपने हस्ताक्षर करते हैं। प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम ईवीएम के साथ जाते हैं। इसके साथ ही प्रत्याशियों को स्ट्रांग रूम के बाहर से देख-रेख की अनुमति होती है। एक बार स्ट्रांग रूम सील होने के बाद गिनती के दिन ही सुबह खोला जाता है। अगर विशेष परिस्थिति में स्ट्रांग रूम खोला जा रहा है तो यह प्रत्याशियों की मौजूदगी में ही संभव हो पाएगा।

No comments:

Post a Comment

Comments System

Disqus Shortname