कोई भी व्यक्ति जो देश को बांटने की बात करे, आतंकवाद के समर्थन की बात करे और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की बात करे। बिना किसी संदेह के वह देशद्रोही है। ऐसे में उस व्यक्ति को हमारे देश के कानून के तहत उचित दंड मिलना ही चाहिए। पर देशद्रोह और राजद्रोह दो अलग बातें हैं और इसी अंतर को समझने के लिए आज हम यह लेख ले कर आए हैं।
ब्रिटिश गवर्नमेंट ने हमारे देश की आजादी के नायक रहे भगत सिंह और सुखदेव पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया था न कि देशद्रोह का। लेकिन स्वतंत्र भारत में किसी भी व्यक्ति पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उसे प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है। इसके पीछे की वजह यह है कि हमारे देश में चुनी हुई सरकार केवल एक तिहाई बहुमत लेकर ही सत्ता में आई होती है। इसका मतलब यह हुआ कि दो तिहाई लोगों का समर्थन सत्ता में बैठी सरकार को प्राप्त नहीं होता है। ऐसे में यही दो तिहाई लोग सरकार से मतभेद रखते हैं। लेकिन हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है जहां सबको अपनी बात रखने और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने का अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति सरकार की नीतियों और सरकार के खिलाफ बोलता है तो उसे राजद्रोह कहा जाता है। आसान शब्दों में समझा जाए तो देश की सरकार का विरोध करना ही राजद्रोह है। किसी भी स्थिति में राजद्रोह को देशद्रोह नहीं माना जा सकता है, पर कई मामलों में सरकार द्वारा कानून के दुरुपयोग की बात भी सामने आई है।
वर्तमान समय में हमारे देश में देशद्रोह के मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। कुछ नेताओं ने राजद्रोह और देशद्रोह के बीच के अंतर को ही समाप्त कर दिया है। पर जो लोग इन दोनों के अंतर को समझते हैं उनके मन में किसी तरह की कोई शंका नहीं है। वे लोग मानते हैं कि देश की अखंडता और संप्रभुता के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही एक सवाल यह भी उठता है की जो लोग देश के बैंकों से अरबों रुपया लेकर ब्याज देना तो दूर की बात मूलधन तक नहीं लौटाते, जो लोग रिश्वत लेते हैं, जो लोग देश के संसाधनों का अवैध तरीके से दोहन कर रहे हैं, क्या वह देशद्रोही नहीं है? ऐसे में ऐसी बहस का कोई व्यापक परिणाम नहीं निकल सकता है जब तक बुनियादी सवाल खड़े किए बिना यूं ही बहस चलती रहेगी। आपकी क्या राय है इस विषय पर? कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं।
ब्रिटिश गवर्नमेंट ने हमारे देश की आजादी के नायक रहे भगत सिंह और सुखदेव पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया था न कि देशद्रोह का। लेकिन स्वतंत्र भारत में किसी भी व्यक्ति पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उसे प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है। इसके पीछे की वजह यह है कि हमारे देश में चुनी हुई सरकार केवल एक तिहाई बहुमत लेकर ही सत्ता में आई होती है। इसका मतलब यह हुआ कि दो तिहाई लोगों का समर्थन सत्ता में बैठी सरकार को प्राप्त नहीं होता है। ऐसे में यही दो तिहाई लोग सरकार से मतभेद रखते हैं। लेकिन हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है जहां सबको अपनी बात रखने और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने का अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति सरकार की नीतियों और सरकार के खिलाफ बोलता है तो उसे राजद्रोह कहा जाता है। आसान शब्दों में समझा जाए तो देश की सरकार का विरोध करना ही राजद्रोह है। किसी भी स्थिति में राजद्रोह को देशद्रोह नहीं माना जा सकता है, पर कई मामलों में सरकार द्वारा कानून के दुरुपयोग की बात भी सामने आई है।
वर्तमान समय में हमारे देश में देशद्रोह के मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। कुछ नेताओं ने राजद्रोह और देशद्रोह के बीच के अंतर को ही समाप्त कर दिया है। पर जो लोग इन दोनों के अंतर को समझते हैं उनके मन में किसी तरह की कोई शंका नहीं है। वे लोग मानते हैं कि देश की अखंडता और संप्रभुता के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही एक सवाल यह भी उठता है की जो लोग देश के बैंकों से अरबों रुपया लेकर ब्याज देना तो दूर की बात मूलधन तक नहीं लौटाते, जो लोग रिश्वत लेते हैं, जो लोग देश के संसाधनों का अवैध तरीके से दोहन कर रहे हैं, क्या वह देशद्रोही नहीं है? ऐसे में ऐसी बहस का कोई व्यापक परिणाम नहीं निकल सकता है जब तक बुनियादी सवाल खड़े किए बिना यूं ही बहस चलती रहेगी। आपकी क्या राय है इस विषय पर? कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं।
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