मोदी सरकार ने रियल एस्टेट सेक्टर में ब्लैक मनी पर नकेल कसने के लिए कई बड़े फैसले लिए। बिल्डरों पर सख्ती के लिए रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट कानून बनाया यहां तक कि बेनामी संपत्तियों और लेनदेन पर रोक लगाने के लिए बेनामी लेनदेन कानून में संशोधन किया गया। इतना ही नहीं काले धन पर लगाम लगाने के नाम पर नोट बंदी भी की। सरकार ने इसे लेकर अपनी पीठ थपथपाई। दावा किया गया कि अब काले धन को सफेद करने का खेल नहीं चलेगा। लेकिन नोटबंदी नाकाम हो गई सरकार के दावे की भी पोल खुल गई क्योंकि रियल एस्टेट सेक्टर में अभी ब्लैक मनी को व्हाइट बनाया जा रहा है।
सीएजी की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि 95 फीसदी कंपनियां जो ROC यानी रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में रजिस्टर्ड है उनके पास पैन कार्ड तक नहीं है। आपको बता दें कि कंपनियों को ROC के पास वार्षिक रिटर्न दाखिल करना होता है इस दौरान कंपनियों को अनिवार्य रूप से पैन नंबर देना होता है। सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि सिर्फ 12 राज्यों में आर ओ सी से रियल एस्टेट सेक्टर में कारोबार कर रही कंपनियों का ब्यौरा मिला है। रिपोर्ट के मुताबिक इन 12 राज्यों की कुल 54578 रियल एस्टेट कंपनियों के आंकड़े ऑडिट के लिए उपलब्ध कराए गए हैं। ROC के पास इनमें से 51670 यानी 95 फ़ीसदी कंपनियों के पेन की सूचना नहीं है। रियल रियल एस्टेट द्वारा ROC को पैन नहीं देने की वजह से सीएजी को यह ऑडिट करना मुश्किल हो गया है कि क्या कम्पनियाँ टैक्स स्लैब में है या नहीं। सीएजी के खुलाशे से साफ़ है कि मोदी सरकार काले धन पर रोक लगाने में नाकाम साबित हुई है।
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