मोदी सरकार का एक फैसला प्रोविडेंट फंड खाताधारकों की चिंता बढ़ा सकता है। सरकार पीएफ पर ब्याज दर को घटाने की तैयारी कर रही है और अगर ऐसा हुआ तो इससे देश के लगभग 8 करोड लोगों को झटका लगेगा। सरकार के इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है। तो सरकार क्यों घटाना चाहती है पीएफ से ब्याज दर और इसका क्या होगा परिणाम आइए जानते हैं।
क्या सरकार की आर्थिक स्थिति खराब है? सरकार पीएफ पर ब्याज दर कम करने की कोशिश क्यों कर रही है? नौकरी पेशा लोगों के खिलाफ क्या है सरकार की रणनीति? यह सवाल इसलिए क्योंकि सरकार नौकरी पेशा लोगों के खिलाफ कदम बढ़ाने की तैयारी में है। वित्त मंत्रालय ने एंप्लॉय प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन को पीएफ की ब्याज दर को सालाना 8.65% से कम करने के लिए कहा है। वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2018-19 में पीएफ पर ब्याज दर बढ़ाकर 8.65% दिए जाने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा है।
क्या सरकार की आर्थिक स्थिति खराब है? सरकार पीएफ पर ब्याज दर कम करने की कोशिश क्यों कर रही है? नौकरी पेशा लोगों के खिलाफ क्या है सरकार की रणनीति? यह सवाल इसलिए क्योंकि सरकार नौकरी पेशा लोगों के खिलाफ कदम बढ़ाने की तैयारी में है। वित्त मंत्रालय ने एंप्लॉय प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन को पीएफ की ब्याज दर को सालाना 8.65% से कम करने के लिए कहा है। वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2018-19 में पीएफ पर ब्याज दर बढ़ाकर 8.65% दिए जाने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा है।
ईपीएफओ ने 2017-18 में पीएफ पर 8.55% की दर से ब्याज दिया था, जिसे इस बार ईपीएफओ ने बढ़ाकर 8.65% कर दिया। आमतौर पर इसे कर्मचारियों के हित का फैसला माना जा रहा था, लेकिन ईपीएफओ के इस फैसले से सरकार काफी नाखुश दिखाई दे रही है। सरकार ने सख्त लहजे में ईपीएफओ से सवाल किया कि ' क्या उनके पास इतना पैसा है जो कि बढ़ी हुई ब्याज दरों के रूप में दिया जा सके?' सरकार का इशारा साफ है कि ब्याज दर कम की जाए।
सरकार भले ही ईपीएफओ से पीएफ पर ब्याज दरें घटाने की बात कर रही है लेकिन ईपीएफओ के बोर्ड आफ ट्रस्टीस का दावा कुछ और ही है। उन्होंने साफ कर दिया है कि वे सरकार के दबाव में नहीं आएंगे और न ही पीएफ की ब्याज दर कम करेंगे। सूत्रों की मानें तो ईपीएफओ के भरोसे की वजह उसकी बैलेंस शीट को माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि ज्यादा ब्याज दर देने के बाद भी ईपीएफओ के पास 150 करोड़ रुपए अतिरिक्त बच जाएंगे, इसलिए पैसे की समस्या नहीं है। समस्या सरकार के दबाव की है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल जब पैसा है तो सरकार उसे कर्मचारियों को क्यों नहीं देना चाहती।
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