लोकसभा चुनावों में मिली जबरदस्त जीत के बाद आज नरेंद्र मोदी पीएम पद की शपथ लेंगे। नरेंद्र मोदी के कई मंत्री भी पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे। जिसके साथ ही शुरू हो जाएगी मोदी सरकार की दूसरी पारी। ऐसे में मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल कई चुनौतियों से भरा होगा। जिसमें सबसे बड़ी चुनौती सूखे से निपटने की होगी। क्योंकि आईआईटी गांधीनगर ने पूरा अनुमान लगाया है कि इस बार देश के 40% हिस्से में सूखे की मार पड़ सकती है।
मानसून बिगड़ता है तो देश की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ती है। बारिश कम हो तो सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को होता है। किसानों के सामने अपनी खेती बचाने का संकट खड़ा हो जाता है और ऐसा ही संकट किसानों के दर पर दस्तक दे रहा है। जी हां, आईआईटी गांधीनगर ने पूरा अनुमान लगाया है कि इस बार देश के 40% हिस्से में सूखा पड़ सकता है। इसका कारण मानसून से पहले हुई कम बारिश को बताया जा रहा है। इस बार मार्च और मई के बीच काफी कम बारिश देखने को मिली है। पूरे देश में भी इस बार 23% कम बारिश हुई है।
देश के दो तिहाई हिस्सों में कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। कुछ इलाके ऐसे हैं जहां काफी कम बारिश हुई है। मानसून से पहले होने वाली बारिश में ऐसी कमी पिछले 6 साल में नही देखी गई, जिसे काफी गंभीर बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इतनी कम बारिश का सबसे ज्यादा असर साउथ के राज्यों में दिखेगा। अगर बारिश नहीं होती तो यहां भयंकर सूखा पड़ने के आसार हैं। इन 3 महीनों में साउथ के राज्यों में 40% कम बारिश दर्ज की गई है। जिससे स्थिति काफी खराब होती नजर आ रही है।
हालांकि अगर मानसून में अच्छी बारिश हुई तो खतरा टल सकता है। इससे हवा के मॉइस्चराइजिंग लेवल में भी सुधार देखने को मिल सकता है। लेकिन मानसून से पहले हुई कम बारिश से ग्रामीण इलाकों में समस्या बढ़ सकती हैं और इसके अलावा शहरों में पानी की कमी देखी जा सकती है। ऐसे में अगर हालात यूं ही रहे तो इससे किसानों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, जिनकी पहले ही कमर टूटी हुई है और इस स्थिति में सुधार लाना कहीं न कहीं मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।
मानसून बिगड़ता है तो देश की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ती है। बारिश कम हो तो सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को होता है। किसानों के सामने अपनी खेती बचाने का संकट खड़ा हो जाता है और ऐसा ही संकट किसानों के दर पर दस्तक दे रहा है। जी हां, आईआईटी गांधीनगर ने पूरा अनुमान लगाया है कि इस बार देश के 40% हिस्से में सूखा पड़ सकता है। इसका कारण मानसून से पहले हुई कम बारिश को बताया जा रहा है। इस बार मार्च और मई के बीच काफी कम बारिश देखने को मिली है। पूरे देश में भी इस बार 23% कम बारिश हुई है।
देश के दो तिहाई हिस्सों में कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। कुछ इलाके ऐसे हैं जहां काफी कम बारिश हुई है। मानसून से पहले होने वाली बारिश में ऐसी कमी पिछले 6 साल में नही देखी गई, जिसे काफी गंभीर बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इतनी कम बारिश का सबसे ज्यादा असर साउथ के राज्यों में दिखेगा। अगर बारिश नहीं होती तो यहां भयंकर सूखा पड़ने के आसार हैं। इन 3 महीनों में साउथ के राज्यों में 40% कम बारिश दर्ज की गई है। जिससे स्थिति काफी खराब होती नजर आ रही है।
हालांकि अगर मानसून में अच्छी बारिश हुई तो खतरा टल सकता है। इससे हवा के मॉइस्चराइजिंग लेवल में भी सुधार देखने को मिल सकता है। लेकिन मानसून से पहले हुई कम बारिश से ग्रामीण इलाकों में समस्या बढ़ सकती हैं और इसके अलावा शहरों में पानी की कमी देखी जा सकती है। ऐसे में अगर हालात यूं ही रहे तो इससे किसानों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, जिनकी पहले ही कमर टूटी हुई है और इस स्थिति में सुधार लाना कहीं न कहीं मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी।
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