आप लोगों ने भी कई बार सुना होगा कि फलाने उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई है। तो आखिर यह जमानत क्या होती है और कैसे जब्त होती है? आज के इस लेख में हम इसी बारे में बात करने वाले हैं। तो आइए जानते है।भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र यानी डेमोक्रेसी माना जाता है। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था ठीक से चलाने के लिए सामान्यतया 5 वर्ष के अंतराल पर चुनाव कराए जाते हैं। चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार को चुनाव आयोग के पास कुछ जरूरी कागजात जमा कराने होते हैं जैसे- अपनी आय, शैक्षिक योग्यता, मैरिटल स्टेटस आदि जानकारियां देनी होती है।
इसके साथ चुनाव का पर्चा भरते समय उम्मीदवार को द रिप्रेजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट 1951 सेक्शन 341 के अनुसार संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए 10000 रुपए की सिक्योरिटी राशि और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए 5000 रुपए की सिक्योरिटी राशि जमा करनी होती है। एससी और एसटी के उम्मीदवार को दोनों चुनाव के लिए सामान्य वर्ग की तुलना में सिर्फ आधी राशि ही जमा करवानी होती है। चुनाव आयोग के पास जमा की गई इस धनराशि को ही जमानत कहा जाता है। तो चलिए अब बात करते हैं जमानत जब्त होना किसे कहते हैं।
जमानत जब्त होना- द रिप्रेजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट 1951 के सेक्शन 158 में उम्मीदवारों द्वारा जमा की गई धनराशि को लौटाने के तरीकों के बारे में बताया गया है। उन्हीं तरीकों में से एक तरीका है जो यह तय करता है कि किस उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त होगी। दरअसल नियम यह है कि अगर किसी उम्मीदवार को किसी निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल वैलेड वोट की संख्या के छठे भाग यानी 1/6 से कम वोट मिलते हैं तो उसकी जमानत जब्त मान ली जाती है। यानी उस उम्मीदवार द्वारा चुनाव आयोग के पास जो भी 10000 या 5000 रुपए या कितनी भी धनराशि जमा कराई गई है, वह धनराशि उसको वापस नहीं मिलेगी। यानी उम्मीदवार द्वारा जमा किया धन सरकार का हो जाता है। इसे ही उम्मीदवार की जमानत जब्त होना कहा जाता है।
उदाहरण- मान लें अगर किसी संसदीय क्षेत्र के लिए 1 लाख वोटिंग हुई, तो जमानत बचाने के लिए हर एक उम्मीदवार को कुल पड़े वोटों के छठे भाग से ज्यादा यानी करीब 16666 वोटों से ज्यादा वोट लाने ही होंगे। अगर किसी भी उम्मीदवार के 16666 वोट या फिर इससे कम आते हैं तो उस उम्मीदवार की जमानत जप्त हो जाएगी।
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