दोस्तों, नरेंद्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकी है और यहां से उसकी कोशिश ऐसा सब कुछ करने और कहने की है जिससे एक बार फिर मई 2019 में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए सरकार का गठन हो। इस कोशिश में मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती वोटर के उस तबके को साधने की है जिसके बिना सत्ता में वापसी करना न सिर्फ मुश्किल है बल्कि नामुमकिन है। यह तबका है देश में किसानों का।
किसानों को 2014 के बाद से आमदनी दोगुनी होने का इंतजार है। आम चुनाव 2014 में बीजेपी ने साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया और अपने कार्यकाल के दौरान इस वादे को पूरा करने की दिशा में कई कदम उठाए लेकिन मौजूदा स्थिति में किसानों का न तो यह वादा पूरा होता दिख रहा है और ना ही मौजूदा कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार का कोई दावं सटीक, जिससे किसानों के वोट को वह अपना बैंक समझ सके।
इसके लिए जहां कुछ हद तक केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार है तो वहीं बीते 4 साल के दौरान 3 साल कमजोर मॉनसून और वैश्विक बाजार में खाद्यान्न उत्पादन की कीमतों का निचले स्तर पर बना रहना भी जिम्मेदार है। गौरतलब है कि पहले कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के इजाफे का एलान करते हुए कोशिश की कि किसानों की वार्षिक आमदनी में कुछ इज़ाफा हो।
हाल ही में किसानों की मांगे पूरी न हो पाने की वजह से बीजेपी को भारी नुकसान हुआ और तीन राज्यों की सत्ता उसके हाथों से निकल गयी और ऐसे में जल्द होने वाले आम चुनावों को मद्देनजर रखते हुए मोदी सरकार से उम्मीद है कि वह किसानों के लिए चौंकाने वाली योजनाएं इस बजट में लेकर आएगी जो कुछ इस प्रकार हो सकती है।
1- मोदी सरकार किसानों को राहत देने व अपने पाले में लेने के लिए फसली ऋण की ब्याज दरों में कटौती कर सकती है।
2- मोदी सरकार उन किसानो के फसली ऋण पर ब्याज ख़त्म कर सकती है जो किसान समय पर अपना कर्ज चुकाते है।
3- मोदी सरकार छोटे और मध्यम वर्गीय किसानों ले लिए 4 - 5 हजार रुपये प्रति एकड़/ प्रति वर्ष की सहायता करने की घोषणा कर सकती है।
4- मोदी सरकार 50 हजार रुपये तक फसल ऋण पर 0% ब्याज की राहत दे सकती है।
5- मौजूदा समय में एमएसपी पर फसल बेचने के लिए किसान को सरकार के ख़रीद केंद्र तक पहुंचना पड़ता है क्योंकि सरकार के खरीद केंद्रों की संख्या पर्याप्त नहीं है। लिहाजा किसानों को अक्सर खाली हाथ लौटना पड़ता है या फिर ख़रीद केंद्रों के बाहर कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है। इस चुनौती को देखते हुए सरकार अपने खरीद केंद्रों की संख्या में इज़ाफा करने की घोषणा कर सकती है
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