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Thursday, November 8, 2018

जानिए भाई दूज पर क्यों की जाती हैं चित्रगुप्त महाराज की पूजा





हिन्दू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार दीपावली पांच दिनों का त्योहार है और इसके आखरी पांचवे दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता हैं। इस तिथि से यमराज और द्वितीया तिथि का सम्बन्ध होने के कारण इसको यमद्वितिया भी कहा जाता है और इसी दिन चित्रगुप्त भगवान की भी पूजा की जाती है। आज के लेख में हम आपको बातएंगे की क्यों यमद्वितिया के दिन की जाती है चित्रगुप्त भगवान की पूजा की पूजा।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यमद्वितिया के दिन हुआ था। इस दिन का जाति के लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। विश्व में अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के लिए भारत की विशिष्ट पहचान है। जिसके कारण पूरे वर्ष यहां कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन चित्रगुप्त पूजा एक ऐसा त्यौहार है जिसे सिर्फ कायस्थ समाज के लोग ही मनाते हैं। कायस्थ समाज से जुड़े लोग  कलम और दवात का इस्तेमाल इस दिन नहीं करते है। पूजा के आखिर में वे संपूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को समर्पित करते हैं। गुप्त का जन्म के दिन ही हुआ था इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने जेष्ठ पुत्र को बुला कर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधि ले रहे है और इस दौरान वह यत्न पूर्वक सृष्टि की रक्षा करें। इसके बाद ब्रह्मा जी ने 11000 वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने के दिव्य पुरुष कलम दवात लिए खड़ा है। ब्रह्मा जी ने उससे उसका परिचय पूछा तो वह बोला मैं आपके शरीर से उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नाम करण करने योग्य है और मेरे लिए कोई काम बताए। ब्रह्माजी ने हंस कर कहा मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिए कायस्थ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे। धर्म-अधर्म पर धर्म राज की राजपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए।
बाद में चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदर्शना से हुआ सुदर्शना से उन्हें श्रीवास्तव, सक्सेना, माथुर और भटनागर नाम चार पुत्र हुए। जबकि इरावती से 8 पुत्र रत्न प्राप्त हुए जो पृथ्वी पर सुरज,ध्वज,निगम,सदानन्द,दामोदर,गौण,अस्थाना,शार्ड् गधर,बाल्मीकि नाम से विख्यात हुए। चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और कहा की देवताओं का पूजन, पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण का पालन यत्न पूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए और यमराज की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे। इसीलिए ही इस दिन यमद्वितिया के दिन चित्रगुप्त की पूजा की जाती है क्योंकि इस दिन चित्रगुप्त का जन्म हुआ था। धन्यवाद।

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