नमस्कार दोस्तों, मोक्ष क्या है? और लोग मोक्ष क्यों चाहते हैं। तो आइए इस पर बात करते हैं। क्या मोक्ष जैसी कोई बात है ? क्योंकि मोक्ष की चर्चा हमारे श्रद्धालु समाज में सदैव से ही चलती आ रही है और आज भी उसके अनेक प्रकार बतलाए गए हैं। इसलिए मोक्ष जैसे अध्यात्मिक विषय पर टिप्पणी करना अनुचित होगा। मोक्ष का अर्थ है मुक्ति और छुटकारा हम सब का सभी प्रकार से सांसारिक बंधनों सभी प्रकार के दुखों से सदा के लिए मुक्त होना ही मोक्ष है ।
मोक्ष को लेकर हमरे समाज में दो प्रकार के विचार अलग-अलग विद्वानों द्वारा व्यक्त किए गए हैं। एक विचारधारा दुख से छूट जाने को मोक्ष की संख्या प्रदान करती है। जबकि दूसरी विचारधारा केवल यही नहीं ठहर जाती। वह यह भी मानती है कि केवल क्लेश अथवा अवसाद मुक्ति ही मोक्ष नहीं है। इसी के साथ दिव्य आनंद की अनुभूति भी होनी चाहिए । इसलिए यह कहा जाता है कि मोक्ष को भावात्मक होना चाहिए ।
प्राचीन भारतीय धर्म ग्रंथों में विभिन्न निकायों में संघीय न्याय वैश्विक एवं बौद्ध दर्शन एवं दुख छय को ही मोक्ष मानते हैं। जबकि वेदांत दुख विलेन के ही साथ आनंद की अनुभूति को भी अनिवार्य मानते हैं। वेदांत दर्शन कहता है। अगर प्राणी को अपने सही रूप का साक्षात्कार हो जाए तो वह निश्चय ही प्रसन्न होगा। यही नहीं वेदांत मोक्ष के भी दो तरह के भेद करता है सदेह मुक्ति और विदेह मुक्ति ।
सदेह मुक्ति वहां होती है। जहां जीते जी ऐसा लगना लगे कि मैं अविनश्वर हो गया हूं और अविनश्वर ही रहूँगा। व्यक्ति रहता दुनिया में है लेकिन तब भी कलेश उसे छूते तक नहीं है ।
विदेहमुक्ति या जीवन्मुक्ति भी कहा है। विदेहमुक्ति उसे कहते है जहा दुःख तो दूर हो ही जाते है साथ मनुष्य देह त्यागने के बाद आवागमन के चक्र से सर्वदा के लिये मुक्त हो जाता है। जब प्राणी निरंतर भाव समाधि में रहने लगता है। तब ऐसी स्थिति को मोक्ष कहते हैं।
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