नमस्कार दोस्तों, आज हम आपको बताने जा रहे हैं नवरात्रि की नवमी तिथि की मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि के बारे में तो आइए जानते हैं। मां दुर्गा जी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। यह सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उनके लिए में असंभव नहीं रह जाता ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ उसमें आ जाती है। देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है और वह कमल पुष्प पर भी आसीन होती है। विधि-विधान से नौवें दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह अंतिम देवी हैं इनकी साधना करने से लौकिक व पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थी। इस देवी की कृपा से शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियम निष्ठ होकर उपासना करनी चाहिए। इस देवी का स्मरण,ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पथ की ओर ले जाते हैं। देवी पुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्ही की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। यह कमल पर आसीन है। और केवल मानव ही नहीं बल्कि गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्रि के नौवे दिन इनकी पूजा की जाती है। इनका स्वरूप मां सरस्वती का भी स्वरूप माना जाता है। अब आइए जानते हैं मां दुर्गा के सिद्धीदात्री स्वरूप की पूजा विधि के बारे में।
दुर्गा पूजा में स्थिति को विशेष हवन किया जाता है। यह नवदुर्गा का आखिरी दिन भी होता है। तो इस दिन माता सिद्धीदात्री के बाद अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाति है । सर्वप्रथम माताजी की चौकी पर सिद्धिदात्री मां की तस्वीर या मूर्ति रख इन की आरती और हवन किया जाता है। हवन करते समय सभी देवी देवताओं के नाम से आहुति देनी चाहिए।मां सिद्धिदात्री का ध्यान पाठ करना चाहिए। बाद में माता के नाम से आहुति देनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप है अतः सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे से कम से कम 108 बार आहुति दे। भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में उनके नाम पर आहुति देकर आरती करनी चाहिए। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है उसे सभी लोगों में बांटना चाहिए।धन्यवाद्।
मां सिद्धिदात्री मंत्र -
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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