सामान्य रूप से ऐसा माना जाता है कि सबसे दुर्लभ रक्त समूह O नेगेटिव होता है, जो बहुत मुश्किल से मिलता है क्योंकि यह रक्त चुनिंदा लोगों में ही पाया जाता है परन्तु O नेगेटिव रक्त समूह से भी दुर्लभ एक ऐसा रक्त समूह है जो करोडो लोगों में से किसी एक में पाया जाता है। यह इतना दुर्लभ है कि दुनिया में मात्र 65 लोगों का ही यह ब्लड ग्रुप है, और उसका नाम बॉम्बे ब्लड ग्रुप है। इस रक्त समूह को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट रक्त समूह भी कहते है, रक्तदान करना और उनके जीवन को बचाना पुण्य का काम है। रक्तदान करने से पहले चिकित्सक रक्त समूह की जांच करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं की वह व्यक्ति रक्तदान कर सकता है या नहीं ।
साल 1990 से 1902 के बीच के. लैंडस्टीनर ने मनुष्य के रक्त समूहों को मुख्य चार भागों में विभाजित किया था A,B,AB और O , रक्त दान करने से पहले रक्त समूह का मिलान करना अनिवार्य है वरना यह जानलेवा भी हो सकता है।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप को Hh ब्लड टाइप या रेयर ABO ग्रुप भी कहा जाता है । हाल ही में मुंबई में 28 वर्ष की पुष्पा की मौत इस ब्लड ग्रुप का रक्त न मिलने के कारण हो गई, प्रथम द्रष्टि मैं पुष्पा अन्य महिलाओं की तरह ही सामान्य थी, परन्तु उसका खून बिलकुल अलग था, और यही उसकी मौत की वजह भी बना। दरअसल, पुष्पा का रक्त ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ यानी Hh ग्रुप था।
डॉक्टरों के मुताबिक यह बेहद दुर्लभ ब्लड ग्रुप है , पहली बार 1952 में इस ब्लड ग्रुप का पता चला था इसकी खोज मुंबई के एक हॉस्पिटल में डॉ. वाई.एम. भेंडे ने की थी। उनके मुताबिक इस ब्लड ग्रुप के मरीज को दूसरे किसी ग्रुप का ब्लड नहीं चढ़ाया जा सकता है इस ब्लड ग्रुप वालों के सिर्फ Hh (बॉम्बे ब्लड ग्रुप) वाले लोग ही अपना ब्लड दे सकते हैं ,पहली बार बॉम्बे में पाए जाने के कारण इसका नाम ही बॉम्बे ब्लड ग्रुप रख दिया गया।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति में एच एंटीजन नहीं होता। एच एंटीजन को मदर एंटीजन भी कहा जाता है, और इसके न होने पर लाल रक्त कण कोई ग्रुप (A, B या O) नहीं बनाता। आमतौर पर ब्लड टेस्टिग में ऐसे व्यक्ति का ‘O’ ग्रुप ही पता चलता है, लेकिन जब रिवर्स टेस्टिंग की जाती है तो पता चलता है कि यह Hh (बॉम्बे ब्लड ग्रुप) है।
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