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Thursday, January 31, 2019

नोटबंदी ने छीनीं नौकरियां, 45 साल में भारत देश ने नहीं देखी ऐसी बेरोजगारी


8 नवंबर 2016 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था उस समय तो बड़े-बड़े दावे किए गए थे कि इससे  काले धन पर लगाम लगेगी, भ्रष्टाचार कम होगा। लेकिन क्या सरकार के दावे पूरे हुए? यह सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि नेशनल सैंपल सर्वे कि जो रिपोर्ट सामने आयी है वो नोटबंदी के साथ-साथ बेरोजगारी को लेकर भी सरकार के वादों पर सवाल उठाती हैं। तो क्या कहती है यह रिपोर्ट और इस रिपोर्ट का एनएससी अधिकायों के इस्तीफे से क्या है कनेक्शन आइए जानते है।

एक दिन पहले खबर आई थी कि आरबीआई, सीबीआई के बाद अब राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग में भी घमासान छिड़ गया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो स्वतंत्र सदस्यों  पीसी मोहनन और जेवी मीनाक्षी ने समय से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने सरकार पर विभाग की उपेक्षा करने का आरोप लगाया था साथ ही कहा जा रहा था कि इस विवाद का एक कारण 2017 और 18 में एनएससी के सर्वे को जारी करने में हो रही देरी भी है। इस खबर के बाद अब बेरोजगारी को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है। कहा जा रहा है कि यह रिपोर्ट वही है जिसे लेकर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो स्वतंत्र सदस्यों ने इस्तीफा दिया था। दरअसल ये रिपोर्ट बताती है कि नोटबंदी की वजह से बेरोजगारी में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर 6.1 % तक पहुंच गयी है। यह आंकड़ा 45 साल के उच्चतम स्तर पर है। इससे पहले 1972 -73 में देश में बेरोजगारी की दर 6 % से ज्यादा थी। अहम बात यह है कि आंकड़े नोट बंदी के बाद के हैं। सर्वे में सामने आया है कि बेरोजगारी की दर गांव के मुकाबले शहरों में कहीं अधिक है। शहरों में यह दर 7.8 % है वहीं गांव में बेरोजगारी की दर 5.3 % है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी की दर युवाओं में कहीं अधिक है। 2017 -18 में गांव के 15 से 29 आयु वर्ग के पुरुषों में बेरोजगारी की दर 10.5 % है जबकि 2011-12 में यह दर 4.8 % थी। बेरोजगारी और नोटबंदी को लेकर विपक्ष पहले ही हमलावर था लेकिन अब इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब विपक्ष को सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया है। जाहिर है आगामी चुनाव में विपक्ष इन मुद्दों को खूब भुनाएगा।

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