राम मंदिर मुद्दे पर घिरी मोदी सरकार ने फिर से नया दाँव खेलते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और कोर्ट में अपील की थी की वह गैर विवादित ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास को दे दे ताकि मंदिर निर्माण के लिए आगे का काम शुरू किया जा सके। सरकार के फैसले का न्यास ने स्वागत किया था और बीजेपी भी इसे खूब भुना रही थी, मगर कल इस मामले में अब एक नया मोड़ आ गया है। राम मंदिर परिसर की विवादित ज़मीन वापस लौटाने के लिए मोदी सरकार की अर्जी के बाद कल इस मामले में एक और याचिका दाखिल की गयी जिसमे केंद्र की अर्जी का विरोध करते हुए लैंड एक्वीजिशन एक्ट की वैधता पर सवाल उठाया गया है।
हिन्दू महासभा की याचिका में कहा गया है की केंद्र राज्य विषय सूचि की आड़ में राज्य की भूमि अधिग्रहित नहीं कर सकता है। जिस एक्ट के तहत 1993 में, तब केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने 67.7 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी वह एक्ट बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं था। याचिका में कहा गया है कि भूमि और कानून व्यवस्था राज्य सूची के विषय है केंद्र को कानून बनाकर राज्य के भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार नहीं है।
आपको बता दें कि 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत विवादित स्थल और आस-पास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था साथ ही पहले से ज़मीन विवाद को लेकर दाखिल तमाम याचिकाओं को ख़त्म कर दिया था। सरकार के इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी तब 1994 में कोर्ट ने तमाम दावेदारी वाली अर्जी को खारिज कर दिया था और जमीन को केंद्र सरकार के पास ही रखने को कहा था। इसके साथ ही यह निर्देश दिया गया था की जिसके पक्ष में अदालत का फैसला आता है ज़मीन उसे दी जाएगी। इसके बाद मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा, लम्बी चली बहस के बाद साल 2010 में लखनऊ बेंच ने अयोध्या की विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बांट दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मई 2011 को स्टे आर्डर दिया था जिसके बाद सरकार ने अपना दाँव खेला था।
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